चिंगारी- सत्तावन के क्रांति की
बांध के बेटा कंधे पे,
वो नारी तलवार लिए,
चूड़ियां हाथों से गायाब थी,
हाथों में हथियार लिए,
दुश्मन को धर धर काट रही,
रण को श्मशान बनाई है,
है हिम्मत तो रोक लो अंग्रेजो,
वो दुर्गा की अवतारी है,
खड्ग शोभते हाथों में,
श्रृंगार किया हथियारों का,
हय पे वो बैठ चली नारी,
वक्त है अब प्रहारों का,
आगे जो आया रोकने को,
रानी यम मार्ग दिखाती है,
जिनसे भारत मा को कष्ट हुआ,
उनका वो शीश गिराती है,
दुश्मन मे त्राहि माम मचा,
अब रक्षा उनकी करेगा कौन,
देख के नारी का ये रूप,
है अंग्रेज़ी योद्धा भी मौन,
बस प्राण बचाने के खातिर,
सब डर के रानी से भाग रहे,
जो आए थे रण मे लड़ने को,
वो घोड़ा पीछे हांक रहे,
लग रहा था कि रण मे शायद,
कोई शत्रु बच ना पायेगा,
जो सम्मुख आया रानी के,
वो कहां सलामत जाएगा,
हाथ ना थकते रानी के,
लगातार चल रहा कृपाण,
सब भाग रहे है यहां वहां,
कैसे बचाएंगे अपनी जान,
वो विधवा शोक मनाने की जगह,
धरती को बचाने आई है,
जो अबला समझे नारी को,
उनको शक्ति दिखलाने आई है,
किन्तु इश्वर की माया,
वो प्रथम युद्ध था ना भाया,
रानी का घोड़ा रुका देख,
जब सामने था नाला आया,
जब तक रानी कुछ सोचेगी,
तब तक पहुंच गए दुश्मन,
शत्रु थे कितने ही घेरे,
उनके बीच ये एक थी जन,
घायल किया सिंहनी को,
तो ये कुत्ते हर्षाए थे,
औकात ना थी जब लड़ने की,
तब कूटनीति अपनाए थे,
रानी युद्ध को हार गई,
लेकिन क्या सच में हार गई,
नारी होकर भी वो रानी,
शत्रु की थी संहार बनी,
वीरगति मंजिल रानी को,
चीता ही दिव्य सवारी थी,
सच मे रानी उस सत्तावन के,
क्रांति की चिंगारी थी।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"