वक्त पे मेहनत
एक बार टिड्डे ने देखा,
कुछ चींटी को मेहनत करते,
ये वक्त है मौज उड़ाने का,
जड़ा चलो इन्हे अवगत करते,
देख के उन्हें परिश्रम करता,
टिड्डा लगा मजाक उड़ाने,
कर के क्यों ठंडी की चिंता,
हम अपना ये वक्त बिगाड़े,
खाओ पियो ऐस करो,
ना चिंता करो भविष्य की,
वक्त आएगा देखा जाएगा,
देखो ये सुहाना दृश्य जी,
बोली चीटिंयां टिड्डे महानुभाव,
तुम तो एकदम कामचोर हो,
खुद तो करते काम नहीं,
करने वालों पे करते शोर हो,
यदि अभी खाने के खातिर,
कुछ भी नहीं जुटाओगे,
बाहर बर्फ पड़ेगी इतनी,
भूखे ही मर जाओगे,
इतना कह के वो चींटियां,
फिर से अपने काम में लगी,
कुछ दिन के बाद वहां पे,
सच मे भीषण ठंड पड़ी,
अस्त व्यस्त सब कुछ था हो गया,
बाहर बर्फीली हवा चल रही,
यहां पे ज्ञानी टिड्डे बाबा की,
भूख के मारे जां निकल रही,
आखिर में हार मान के टिड्डा,
पहुंचा उन चींटियों के घर पे,
मुझको कुछ खाने को देदो,
ठंड बहुत चल रही बाहर मे,
बोली चींटी ना ना टिड्डे,
हम ना कुछ भी दे सकते,
दूजो को भी कुछ खिला सके,
इतना खाना ना हम रखते,
इसीलिए कहा था हे टिड्डे,
खाने को कुछ करते जो जमा,
अपने घर पे तुम करते ऐस,
ना ऐसे भीख मांगते यहां,
शर्म से टिड्डा चला गया,
ठंड में कुछ खाना लाने,
पैर तो एकदम जम थे गए,
पर फिर भी अपना भूख मिटाने,
इसीलिए कहते है बच्चो,
हर काम वक्त पे ही करना,
यदि चूंक गए काम से अपने,
ऐसे ही तब पड़े भटकना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"