हिंद का गुणगान
मै हिंद का वासी आज,
तुम्हे गुणगान सुनाने आया हूं,
एक कविता मे तुमको,
हिन्दुस्तान दिखाने आया हूं,
मिट्टी में सोना होता है,
पानी अमृत मेरे मुल्क में,
प्रेम पावन निर्मल मिलता,
प्रेम के ही शुल्क में,
इन्सानियत ही धर्म है,
लिखा यहां हर शास्त्र मे,
प्रेम की गंगा है बहती,
देख मेरे राष्ट्र मे।
अंबर भी फूल बिखेरते,
नदियां भी महक फैलाती है,
ये हिंद मेरा अनमोल बड़ा,
ये धरती मा दिखलाती है।
उत्तर में रक्षक है हिमालय,
मा भारती के सेवा में,
एक एक को प्यारी मौत है,
सेवा के बदले मेवा में,
बच्चे भी जिस मुल्क के,
जानों पे खेला करते है,
उम्र हो छोटी भले,
पर राष्ट्र पे ये मरते है,
ये मुल्क है अलबेला,
हर मजहब के रहते लोग है,
मै मुल्क पे मिट जाऊंगा,
सबको हुआ ये रोग है,
अंबर से लेके धरती,
धरती से लेके पर्वत,
हर एक की वाणी प्यारी,
नदियों में जैसे शर्बत,
मुल्क हमारा याद दिलाता,
वीरों के बलिदान की,
आओ फिर से गुणगान करे,
हम अपने हिन्दुस्तान की।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"