झूठे दोस्त
एक बार दो दोस्त चले,
किसी अन्य गांव में जाना था,
जंगल से होके राह बना,
कुछ भी हो उनको जाना था,
जब पहुंचे जंगल घना हुआ,
पशुओं का भी डर सता रहा,
पर फिर हिम्मत कर बढ़े दोनों,
पर आगे कोई था बैठा हुआ,
शायद वो यम का भेजा,
दूत दिखाई पड़ता था,
वो काला मोटा ताजा भालू,
उनके आगे ही बढ़ता था,
भय से दोनों कांप गए,
अब जान बचाएंगे कैसे,
ना पास मे कोई हथियार हमारे,
भालू को भगाएंगे कैसे,
एक दोस्त जल्दी जल्दी,
एक पेड़ पे खुद को छुपा लिया,
और इसको मरने को छोड़ दिया,
उसने था दोस्ती दिखा दिया,
मुझको भी ऊपर खींचो,
उससे आग्रह लाखों बार किया,
मुझे ना आता तुम्हे खींचना,
ये कह कर इनकार किया,
फिर याद इसे आया की,
दादी मां ने कुछ सिखलाया था,
भालू आए सांस रोक सोना,
दादी ने ये बतलाया था,
जल्दी से इसने अपनी,
दादी के तरकीब को अपनाया,
दोस्त ने तो गद्दारी की,
पर कैसे भी कर जान बचाया,
जब भालू चला गया,
तब वो दुष्ट भी पेड़ से उतर गया,
कैसे हो दोस्त ये पूछ के वो,
फिर गद्दार रूप में निखर गया,
पूछा आखिर भालू ने,
कानो मे तुमको क्या बोला था,
मैंने ऊपर से देखा वो आके,
तुमको तो कुछ बोला था,
हां हां भालू ने मुझे कहा,
गद्दार मेरा एक मित्र बना,
तू आज मुझे मरवा देता,
गद्दारी का तू चित्र बना,
अब भाग यहां से वरना,
मै भी दोस्ती दिखाऊंगा,
भालू ने मुझे कहा है,
तुझको उसके घर छोड़ आऊंगा।
इसीलिए बच्चो याद रखो,
आस्तीन के सांप से रहना दूर,
यदि ये साथ रहेंगे जिसके,
धोखा उसको देंगे जरूर।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"