कर्म का फल
एक था जंगल उस जंगल में,
सारस पक्षी रहता था,
कोई धोखा यदि उसे दे तो,
वक्त पे बदला लेता था।
ऐसे ही एक लोमड़ी शातिर,
धोखा सब को वो देती थी,
मूर्ख सभी को समझा करती,
फायदा सभी से लेती थी,
सारस की वो मित्र बनी,
और उसे बुलाया दावत पे,
सारस गया खुशी खुशी,
पर मूर्ख बन आया दावत से,
दरअसल दुष्ट लोमड़ी ने था,
खीर परोसा थाली में,
चोंच था सारस का लंबा,
खीर को खा ना पाया थाली से,
जान के भी सारस की मजबूरी,
उसने ऐसा बर्ताव किया,
दावत पे बुला सभी के आगे,
मूर्ख था उसको बना दिया,
सारस ने सोचा मन में,
बदला तो मै भी लूंगा जी,
जिस चाल को इसने चला आज,
एक दिन तो मै भी चलूंगा जी,
वो दिन आया सारस ने भी,
दावत पे लोमड़ी को बुला लिया,
उसने भी खीर लोमड़ी को,
एक लम्बी सुराही में परोस दिया,
लोमड़ी का मुंह खाने को खीर,
ना घुसा सुराही के अंदर,
सब हंसे लोमड़ी के ऊपर,
सबने कहा लोमड़ी है छूछुंदर,
लोमड़ी शर्म के मारे वहां से,
उलटे पांव भाग चली,
अब जीवन में ना किसी को ठगना,
ये प्रतिज्ञा उसने की,
इसीलिए याद रखो बच्चो,
किसी के साथ गलत नहीं करना,
जो जैसा कर्म करेगा उसको,
वैसा ही है फल मिलना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"