अनुसरण
एक लकड़हारा जंगल में,
पहुंचा पेड़ काटने को,
यही थी उसकी रोज़ी रोटी,
परिवार का पेट पालने को,
जंगल में उसने देखा,
एक लोमड़ी को लंगड़ाते हुए,
ये कैसे शिकार करती होगी,
कैसे जीती है खाते हुए,
चढ़ गया वो एक पेड़ के ऊपर,
देखने सच्चाई लोमड़ी की,
पता लगा के रहूंगा मै,
उसने ये आज ठान ली थी,
थोड़ी देर के बाद देखा,
एक शेर मुंह में शिकार लिए,
वहां बैठ भर पेट खाया वो शेर,
फिर जंगल की ओर चला डकार लिए,
कुछ ही देर के बाद लोमड़ी,
आई पेड़ के पीछे से,
शेर का बचा शिकार खाने को,
छुप गई झाड़ी के नीचे से,
जब देखा लकड़हारे ने बोला,
इश्वर सबको ऐसे ही देता है,
मै भी क्यों करूंगा मेहनत,
अब आखिर में सोच वो लेता है,
फिर काफी दिन तक वो भी,
बिन मेहनत के बैठा रहता है,
मुझको भी ऐसे ही दे दो हे प्रभु,
भगवान से इतना कहता है,
गुस्से में बोले भगवान,
जा रे मूर्ख बिन मेहनत के कैसे खायेगा,
बोला ये- जैसे दिया लोमड़ी को,
वैसे ही मुझे मिल जाएगा,
बोले भगवान रे दुष्ट अगर,
तुझको करना ही था अनुसरण,
उस शेर के जैसा बन जाता,
जो कर सकता दुजों का पालन,
देख जड़ा उस शेर को वो,
खुद तो मेहनत से खाता है,
संग मे किसी दुर्बल को भी,
मेहनत वो करके खिलाता है,
इतना सुनते ही लकड़हारे की,
बुद्धि जगह पे आई थी,
छोड़ के आस भगवान पे केवल,
उसने मेहनत अपना ही ली।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"