दुर्गा की अवतारी

जब हिंद को मेरे जकड़ लिया था,
कीड़ों ने जंजीरों में,
तब आजादी कि ज्वाला धधकी,
हिंद देश के वीरों में,

आज इस कविता में तुमको,
एक नारी की कथा सुनाऊंगा,
मां दुर्गा की अवतारी,
लक्ष्मीबाई से मिलवाऊंगा।

मुंहबोले भैया कानपुर के,
नाना की बहना प्यारी थी,
पिता की थी संतान एक,
वो सबकी राज दुलारी थी,

आशीष था उस पर दुर्गा का,
शेरनी का दिल था सीने में,
कहती थी राष्ट्र के काम ना आए,
तो क्या मज़ा है जीने में,

बचपन से ही योद्धा थी,
हर क्षेत्र में कुशल और निपुण,
जैसे एक योद्धा लड़ता है,
वैसे थे उसमें सारे गुण,

इन्हीं गुणों के संग मे,
ब्याह हुआ झांसी के भूपति से,
रानी मिली झांसी को ऐसी,
हुआ विकास फिर तेज गति में,

किन्तु इश्वर की माया,
झांसी पे काला संकट छाया,
झांसी नरेश के प्राणों खातिर,
काल देव का दूत आया,

विधवा रानी बनी,
विधि ने गजब का खेल था रचाया,
राजा के बिन झांसी को देख,
दुश्मन था मन में हर्षाया,

अंग्रेज़ का नेता डलहौजी,
भारत में पैर था फैलाया,
भीख मांगते मांगते देखो, 
ब्रिटिश राज्य झांसी आया,

पर आंखों के आंसू पोछ के रानी,
सोची राज्य बचाने को,
मनसा जिनका था कब्जा करना,
उनको दूर भगाने को,

शोक मनाने के अवसर पे,
हाथो मे तलवार लिया,
धरती मा की चीख सुनी तो,
हाथों में हथियार लिया,

रण में उतर गई रणचंडी,
शत्रु के शीश गिराने को,
जो बच गया रानी के हाथो से,
भाग रहा है जान बचाने को,

आया वॉकर उसने सोचा,
ये तो अबला नारी है,
पर वो क्या जाने ये नारी,
मा दुर्गा की अवतारी है,

तलवार खींच के रानी ने,
शुरू किया भीषण रण को,
त्राहि त्राहि था मचा शत्रु मे,
वो काट रही शत्रु जन को,

वॉकर के वहम को दूर किया,
रानी ने अपनी शक्ति दिखलाई,
भाग गया रण छोड़ के वॉकर,
उसको इसी में दिखी भलाई,

काल को मात दिया रानी ने,
आगे बढ़ी ग्वालियर के ओर,
किन्तु यमुना के तट पे,
फिर से हुआ युद्ध का शोर,

फिर हारे अंग्रेज़ रानी से,
रानी फिर आगे बढ़ आई,
लेकिन महा गद्दार सिंधिया ने,
यहां पे गद्दारी दिखलाई,

विजय हुई रानी पर फिर से,
युद्ध की हुई तैयारी,
धरती मा पीड़ित हुई दुबारा,
सिंधिया ने जो कि गद्दारी,

इस बार आया जनरल स्मिथ,
रानी ने पहले भी उसे हराया था,
नारी शक्ति क्या होती है,
इससे अवगत करवाया था,

इस बार भी हारा स्मिथ पर,
अंग्रेजो ने कूटनीति अपनाई थी,
पिछे से ह्यूरोज आया,
शेरनी कुत्तों के बीच घिर आई थी,

तब भी हाथों में लेके तलवार,
रानी ने शत्रु से लड़ी लड़ाई थी,
अपने अंतिम सांसो तक रानी ने,
झांसी की जान बचाई,

कुत्तों से लड़ते लड़ते रानी,
एक नाले के सामने आई थी,
बस यही था वो स्थान जहां पे,
शेरनी पे भीषण संकट छाई थी,

घोड़ा रुका देख के नाला,
तब तक कुत्तों की फौज आ गई,
वार हुआ शत्रु का रानी पे,
खुनों से रानी थी नहा गई,

शेरनी गिरी घायल होके,
अब चिता पे बारी आने की,
शत्रु की हिम्मत नहीं हो रही,
पास रानी के जाने की,

हुई शहीद वीरांगना,
अब मंजिल वीरगति ही थी,
ऐसी पुत्री को खोके उस दिन,
मा धरती भी काफी चीखी,

अपना कर्तव्य निभा के रानी ने,
एक नव चिंगारी जला दिया,
आजाद हिंद करने खातिर,
संग्राम का था आरंभ हुआ,

बलिदान रहेगा अमर हे रानी,
विश्व के इतिहास में,
तुम याद रहोगी सदा के खातिर,
हर हिंद प्रेमी के सांस मे।

                          - अदित्य कुमार
                              "बाल कवि"










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