विश्वास सभी पे मत करना
एक बार एक ब्राह्मण,
भोर में निकल पड़ा नहाने को,
आज था उसे बाहर घर जाना,
पूजा संपन्न कराने को,
देखा पथ पे एक बाघ,
पिंजरे में खूब था चीख रहा,
मुझे आजाद करो हे ब्राह्मण,
मांग था उससे भीख रहा,
ब्राह्मण बोला हे वनराजा,
कैसे तुमपे विश्वास करू,
बाहर आते ही खाओगे,
कैसे मै ऐसी मौत मरू,
बोला बाघ करो विश्वास,
नहीं मै तुमको खाऊंगा,
एक बार आजाद हुआ तो,
सीधे जंगल मै जाऊंगा,
लेकिन बाघ मन में बोला,
एक बार जो बाहर आऊंगा,
आजाद मुझे कर दे ब्राह्मण,
पहले तुझको ही खाऊंगा,
ब्राह्मण इन बातों से अनजान,
जाके पिंजरा खोल दिया,
अब भूख मेरी ना शांत हो रही,
बाघ ने ऐसा बोल दिया,
ब्राह्मण बोला हे व्याघ्र,
मैंने मदद तुम्हारी की है,
आजाद तुम्हे करवाया मैंने,
तुमपे कर्ज उधारी की है,
इतने में जंगल से देखा,
एक सियार उस ओर आ रहा,
कहा सियार ने मै सोया था,
इतने में कहीं से शोर आ रहा,
बोला ब्राह्मण हे सियार जी,
अब तुम्हीं कुछ करो उपाय,
इश्वर शुक्रिया तुम्हारा,
कोई तो है जो जान बचाए,
बोला सियार हे ब्राह्मण,
आखिर किस बात से तुम घबराए हो,
ये बाघ बहुत है हिंसक,
आखिर पास क्यों इसके आए हो,
फिर ब्राह्मण ने जो घटना बीती,
सब सियार को सुना दिया,
ये बाघ तुम्हे ना छोड़ेगा,
उस सियार ने बता दिया,
कहा सियार ने हे वनराजा,
मुझे ना होता है विश्वास,
पिंजरे में तुम आ सकते नहीं,
मुझको तो लगता है बकवास,
कहा बाघ ने देख रे मूर्ख,
कैसे मैं पिंजरे में आया,
फिर उस बाघ ने उस सियार को,
पिंजरे में घुस के दिखलाया,
जैसे ही वो बाघ घुसा,
पिंजरे के भीतर,
उस सियार ने जाके उसका,
द्वार बन्द किया झटपट,
बंद हुआ वो बाघ दुबार,
फिर से वो इतना ही बोला,
हे सियार अब मुझे दिखाओ,
कैसे ब्राह्मण ने पिंजरा खोला,
कहा सियार ने चुप कर मोटे,
दुष्ट तू अंदर ही अच्छा,
यदि दुबारा आया बाहर तू,
हम सब को खायेगा कच्चा,
कहा सियार ने हे ब्राह्मण,
अगली बार से रहना सावधान,
कहा ब्राह्मण ने धन्यवाद,
आज तुमसे मिला है जीवनदान,
इसीलिए बच्चो याद रखो,
विश्वास सभी पे मत करना,
जो लगे जान का है दुश्मन,
सदा दूर उनसे रहना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"