वृक्ष बिना जीवन हो कैसा
जो जीवन का दाता माता,
हमने भूला उसका उपकार,
जिससे जीने को सांसे मिलती,
जिससे मिले हमें आहार,
कड़ी धूप में इसके नीचे,
बैठ के हम सुस्ताते है,
लेकिन जब बारी आती अपनी,
काट हम इसे गिराते है,
सबसे सच्चा मित्र हमारा,
जीवन का है एक आधार,
ये ना हो कुछ पल के खातिर,
ना हो कोई सांस-आहार,
लेकिन हम मुर्ख मानव,
कहां समझ पाते है इसको,
जहां दिखा ये हरा भरा,
हम काट गिराते है इसको,
शायद आप समझ गए होंगे,
किसको लिखने आया हूं,
अपनी कविता की पंक्ति में,
पेड़ को आज मैं लाया हूं,
जहर को खुद ये सोख है लेता,
ऑक्सीजन हमको देने को,
क्या केवल इस खातिर,
ताकि वार कुल्हाड़ी का लेने को,
हे मानव विनती है तुमसे,
वृक्षों का मत नाश करो,
वृक्ष बिना जीवन हो कैसा,
बस कुछ पल एहसास करो।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"