जूता कहां गया?

एक दिन चिंटू देर से आया,
शिक्षक साहब भड़क उठे,
समय घड़ी में देखा और,
छड़ी हाथों में खड़क उठे,

बोले चिंटू देर किया अब,
कारण जल्दी से बतला,
यदि कारण नहीं बता पाया तो,
आगे अपने हाथ बढ़ा,

बोला चिंटू मास्टर साहेब,
कारण अभी बताता हूं,
क्यों देरी हुई विद्यालय में,
आपको अभी समझाता हूं,

बोले मास्टर साहब चिंटू,
चल अब बोलना कर दे शुरू,
बोला चिंटू बता रहा हूं,
ध्यान से सुनिए मेरे गुरु,

किसी बात को लेके आज,
पापा मम्मी मे जंग हो गया,
बस उस बीच मे ही मास्टर जी,
मुझको थोड़ा देर हो गया,

बोले सर जी रे गधे,
तू जंग देखने में था व्यस्त,
अब तो तू हाथ बढ़ा चिंटू,
तुझको कर देता हूं मस्त,

बोला चिंटू ना ना सर जी,
जंग मे आखिर करूंगा क्या,
जंग देखने में देरी कर,
आपके हाथों मरूंगा क्या,

रे चिंटू साफ साफ कह,
आखिर देर तुझे किस मे हो गई,
मेरे जुटे गुम हो गए थे सर जी,
देर मुझे इसमें हो गई,

जूते गायब हो गए तो गधे,
क्यों ना संभाल के रखता है,
जूतों को खोजने के चक्कर में,
देर से यहां पहुंचता है,

जूता नजर के आगे था सर जी,
लेकिन मैं असमर्थ था लेने में,
तो हाथ निकल बाहर चिंटू,
मै समर्थ हूं डंडा देने में,

जब नजरो के आगे जूता था,
तो मुहर्त देख रहा था क्या,
इस मुहर्त पे जूता लूंगा,
तू ये ही सोच रहा था क्या,

अरे सर जी मम्मी पापा के,
जंग मे जूता था हथियार,
जब ना कुछ उनको मिला,
उन्होंने जूता ही बना लिया हथियार,

इतना सुनते ही मास्टर जी,
नौकरी छोड़ के निकल गए,
ऐसा सदमा उन्हे लगा चिंटू से,
ऐसे बच्चो से वो संभल गए।।

                          - आदित्य कुमार
                               "बाल कवि"


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