कलयुग
घोर है कलयुग आया देखो कितना बदल गया संसार,
एक दूजे को नोचने खातिर हर घर में पल रहा सियार,
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम हर दिशा मे कोई चोर खड़ा,
छोटे से भू भाग के खातिर हर कोई अपनों से लड़ा,
बेटा भी बाप को भूल गया आखिर कैसी मजबूरी है
कलयुग के अभिशाप पे लिखना लगता बहुत जरूरी है,
सपना गांधी का टूट रहा रिश्तों मे भी अब झूठ दिखा,
कलयुग की इस दुनिया में बुराई से सब वशीभूत यहां,
एक वक्त मे बेटे की ग़लती को बाप ने कभी सुधारा था,
मा का आंचल पिता का हाथ केवल एक मात्र सहारा था,
वक्त ये कैसा आया देखो कोने में बूढ़ा बाप,
बूढ़ी मां के हाथों झाड़ू भूमि पे कर रही विलाप,
बचपन में जिस मां ने गिले से तुम्हे बचाया था,
तुमको छप्पन भोग खिला खुद सुखी रोटी खाया था,
वो मां आज तरसती केवल एक ग्लास पानी खातिर,
क्या मां पशुओं सी हो गई और हो गए हो तुम इतने शातिर,
चोट तुम्हे जब लगती थी दवा वो मा बन जाती थी,
अपने ह्रदय को काट तुम्हे ममता अपनी दिखलाती थी,
आज बड़े तुम हो गए इतने उस मां बाप को छोड़ दिए,
जिन्होंने तुम्हे रिश्ता समझाया उनसे रिश्ता तोड़ दिए,
मां बाप यदि परेशानी है तो तुम हो कलंक इस भूमि पे,
धरती पे तुम्हे रहना है नहीं चले जाओ सदा को भूमि में।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"