पुलवामा
चार वर्ष है बीत गए पर अब भी वो नज़ारा आता है,
उस पुलवामा को करके याद आंखो में आंसू भर जाता है,
चौदह फरवरी का भोर था और जब देश नींद में सोया था,
जिस दिन चालीस कुर्बान हुए ये भारत उस दिन रोया था,
उन वीरों ने भारत मां पे जो खुद को कुर्बान किया,
याद रखेगा हिंद सदा जो वीरों ने बलिदान दिया,
लेकिन जब हिंद सोचता है उन वीरों की कुर्बानी को,
जब उन वीरों ने त्याग कर दिया अपनी भरी जवानी को,
तब मन आक्रोशित हो जाता तलवार हाथों में आता है,
जब हिंद का कोई बेटा अकारण ही बलि चढ़ जाता है,
हिंद देश के वीरों के जब गिरते मस्तक धरती पे,
उन वीरों को करने सलाम मृत्यु भी स्वयं ठहरती है,
वो भारत मा की संताने देश पे मर मिट जाती है,
ये धरती उन वीरों के खातिर गीत बलिदानी गाती है,
पुलवामा मे वीर शहीदों ने जब धरती को त्यागा,
देश पे मिटने वालों ने भारत मा का आंचल पाया,
सौभाग्य मुदित उनका होता जो धरती का आंचल पाते है,
अधिकारी वो स्वर्ग के होते है जो देश पे मर मिट जाते है,
भारत मां के गोद में जिनको मृत्यु गले लगाती है,
जिनके खातिर स्वयं देश की मिट्टी आंसू टपकाती है,
व्यर्थ नहीं जाने देते हम उन वीरों के बलिदान कभी,
गिन गिन के ले लेते है हम दुश्मन से इतेकाम सभी,
हिम्मत लाख जुटाते है लेकिन अब भी दिल रोता है,
सद्दीयों तक भूल नहीं पाता जब भारत बेटा खोता है,
पर फिर भी जब जब उन वीरों की छवि नयन पे आते है,
केवल और केवल ये कलमें गीत बलिदान के गाते हैं,
हम कवियों के कलम तभी उन परिवारों की ओर बढ़े,
जब उस मा के बेटे इस मा के रक्षा खातिर बलि चढ़े,
जब उस बाप का शेर_ए_दिल इस हिंद पे मर मिट जाता है,
जब उस बूढ़े बाप का बेटा झंडे में लिपटा आता है,
पत्थर दिल भी रो जाता है कण कण जब नम हो जाते है,
उन वीरों के खातिर जब आंसू भी कम पड़ जाते है,
जब बहन कि राखी हिंद देश के रक्षा को भेंट चढ़ जाते है,
पत्नी की चूड़ी सरहद पे टूट के जब गिर जाते है,
जब हिंद देश का कोई बेटा सरहद पे शहीद हो जाता है,
देश के खातिर मरने वाला तब इश्वर सा पूजा जाता है।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"