अंधेर नगरी (किस्सा से कविता)

अंधेरे नगरी का किस्सा,
तुमने बहुत सुना होगा,
पर आज कविता मे किस्से का,
मजा कुछ दुगना होगा,

छोड़ के जब उस लोभी चेले को,
गुरुवर अपने राह चले,
जब संकट में हो मुझे करना याद,
बस इतना उसके कान मे बोले,

अब वो चेला खूब मजे से,
ठूंस ठूंस के खाता था,
इतना सस्ता सब था नगरी मे,
खूब वो मौज उड़ाता था,

एक दिन एक किसान की बकरी,
दब के दीवार में मर गई थी,
बकरी की मौत देख के उस किसान कि,
सांसे एकदम ठहर गई थी,

कुपित हुआ वो कारीगर पे,
पहुंचा राजा के दरबार,
बोला इस कारीगर के चलते,
मेरी बकरी गई स्वर्ग सिधार,

बोले राजा कारीगर को,
फांसी पे अभी चढ़ा दो जी,
बोले हे सैनिक जल्दी से,
इसकी रस्सी बनवा दो जी,

रस्सी बनी परन्तु वो,
कारीगर के गर्दन मे ना आ पाई,
यदि न्याय ना मिला इसे तो,
राज्य में होगी बड़ी बुड़ाई,

उस सनकी राजा ने झटपट,
एक फरमान निकाल दिया,
उस रस्सी के नाप का व्यक्ति,
का खोज तत्काल किया,

एक दुकान पे ये चेला,
खाने में था व्यस्त पड़ा,
अभी मिष्ठान था खतम किया,
अब हाथों में था दही-बड़ा,

थोड़ी देर में राजा के सैनिक,
चेले के सम्मुख आए,
बोला चेला हे सैनिकों,
आने का कारण बतलाए,

बोले सैनिक हे महा मोटे,
फांसी पे तुम्हे चढ़ाना है,
राजा का आदेश है कि रस्सी के,
नाप का व्यक्ति लाना है,

बोला चेला पर मैंने,
आखिर किया है क्या अपराध,
क्यों मुझे लटकाने आए हो,
पहले समझाओ पूरी बात,

बोले सैनिक एक फरियादी,
आया राजा के दरवार,
उसकी बकरी मर गई दब के,
कमज़ोर बनी थी एक दीवार,

कारीगर की ग़लती थी,
उसे फांसी की सजा सुनाई है,
किन्तु उसके गर्दन के मुकाबले,
रस्सी ही बड़ी बन आई है,

इसलिए तुम्हे ले जाएंगे,
राजाजी न्याय सुनाएंगे,
जिसके नाप की रस्सी है,
फांसी पे उसे झुलाएंगे,

और गर्दन देख तुम्हारी,
रस्सी की नाप आ जायेगी,
तुम यदि लटक गए फांसी पे,
बकरी को न्याय मिल जाएगी,

इतना सुनते ही वो चेला,
एकदम पूरा कांप गया,
अब वो अपने गुरुवर के,
उस चेतावनी को भांप गया,

बिना देर के वो सैनिक,
उसको ले गए राजा जी के पास,
अब वो चेला भांप गया,
सीधा जाएगा यमराज के द्वार,

उसको याद आया कि गुरुवर ने,
कहा था याद कर लेने को,
अब यही एक अवसर था उसको,
ख़ुद को जीवनदान एक देने को,

आए गुरुवर उस चेले ने,
उनको अपनी व्यथा बताई,
एक चाल चली गुरुवर ने,
अपने शिष्य की जान बचाई,

बोले गुरुवर हे राजन मुझको,
फांसी पे चढ़ना है,
ये शुभ मुहुर्त है मरने की,
पहले तो मुझको मरना है,

इस मूहर्त पे मरेगा जो,
सीधा सम्राट बन जाएगा,
जो इस मूहर्त पे प्राण को त्यागेगा,
वो हजार वर्ष का उमर पाएगा,

इतना सुनते ही वो राजा,
खुद फांसी पे झुल गया,
अब वो चेला इस नगरी में,
रहने का विचार ही भूल गया।।

                           - आदित्य कुमार
                                "बाल कवि"


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