मंत्री जी पेंशन देदो- शिक्षक का दर्द
एक शिक्षक का पेंशन ना होने का दर्द बाल कवि आदित्य द्वारा कविता में उतारा गया----
मै शिक्षक हूं बिना पेंशन वाला,
माथा है बस टेंशन वाला,
जितना कमाते है वो बच्चों में लगाते है,
कर्जा लेना पड़ता है तब घर हम बनाते है,
बुढ़ापे का केवल एक सहारा पेंशन है,
मंत्री जी सुनो ये हक हमारा पेंशन है,
नया नया आप तो आदेश बस देते हो,
थोड़ा खर्च देते हो और हमीं से काम लेते हो,
हर काम करते है हम पूरी ईमानदारी से,
हमने घर को छोड़ा था कोरोना महामारी में,
फिर भी आपने शिक्षक का कदर नहीं माना है,
शिक्षक का महत्व क्या है ये नहीं पहचाना है,
आज भरी जवानी इस चिंता में बीता रहे है हम,
मन पूछ रहा अब कौन सहारा उत्तर बता रहे है हम,
की मंत्री जी ने पेंशन छीना,
व्यर्थ है अब बूढ़े का जीना,
नेता जीता एक बार तो जीवन भर मिलता है पेंशन,
राष्ट्र का निर्माता शिक्षक घूम रहा बुढ़ापे में वन वन,
जिन बच्चो में रुपया पैसा खर्चा करते जाए हम,
मंत्री जी ने मजबूर किया उन पे आश्रित हो आए हम,
मंत्री जी क्या भूल गए एक शिक्षक की क्या ताकत है,
देश को आगे बढ़ने मे इस शिक्षक की क्या लागत है,
तन मन हमने सौंपा और इस देश के खातिर काम किया,
और क्या पेंशन छीन के तुमने हमको ये इनाम दिया,
हाथ जोड़ के करे प्रार्थना हे मंत्री जी विनती सुन लो,
पेंशन है अधिकार हमारा कृपया कर पेंशन देदो,
बच्चे किसके कैसे हो ये आज बताना मुश्किल है,
बच्चे ही बने सहारा तब ये साफ बताना मुश्किल है।।
आज के बच्चों को मंत्री जी उपकार भूलते देर नहीं लगती,
यदि पेंशन मिलता तो बुढ़ापे की जीवन अंधेर नहीं लगती,
आपसे आस लगाए है हम पेंशन तो देना होगा,
आप स्वयं मुहर लगवाएंगे जो वोट यदि लेना होगा!!
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"