माटी का रिश्ता

मैं भारत का लाल आज फिर से कलम उठाया हूं,
भारत मां की माटी का दुख दर्द सुनाने आया हूं,

भारत की जिस माटी को नवजात शिशु सब खाते है,
लेकिन जब ये शिशु आगे चल भूल इसे ही जाते है,

तब तब इस माटी का हृदय फुट फुट के रोता है,
लेकिन तब किसी भी मानव को एहसास ना होता है,

मुझको है एहसास हुआ इसलिए मैं लिखने आया हूं,
भारत मां की माटी का दुख दर्द सुनाने आया हूं,

जिस माटी का चीर के सीना अपना फसल उगाते है,
जिस माटी का चीर के सीना पोखर नदी बनाते है,

लेकिन ये माटी फिर भी हर दुख को सह जाती है,
सदा रहो तुम वीर सपूतों बस इतना कह जाती है,

दर्द इसे तब तब होता है जब हम भूले इसके उपकार,
ये माटी है जीवन सबका सदा रहो इसका आभार,

हर एक दर्द को भूल के माटी फिर हमको अपनाती है,
इसलिए हम बेटे इसके और ये मां कहलाती हैं,

हर एक आंसू शोख है लेती जब कोई भी रोता है,
इसीलिए माटी का रिश्ता मां बेटे सा होता है।।

                                            - आदित्य कुमार
                                                 "बाल कवि"


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