कलम करो स्वीकार

लहू को स्याही बना दिया,
और कलम बनी तलवार,
मातृभूमि की रक्षा करने,
युद्ध में दिया उतार,

तन मन सब साहित्य को सौंपा,
कलम बनी श्रृंगार,
दंभ, द्वेष और झूठ जहां हो,
कलम करे संहार,

दीन दुखियों के खातिर आज,
कलम इश्वर अवतार,
असहाय का मदद बनी
और भूखों का आहार,

हाथों में यदि कलम तुम्हारे,
जीवन बने सुधार,
यदि कलम को ठुकराया तो,
जीवन बने बेकार,

बर्फ सी रहे कलम हरदम,
और कभी बने अंगार,
मानव जीवन सफल करो,
तुम कलम करो स्वीकार।।

                      - आदित्य कुमार
                           "बाल कवि"

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