फौजी का इनाम
चलो आज कविता मे तुमको,
कुछ ऐसी बातें बतलाते है,
क्या कुछ करना पड़ता है हमें,
कैसे फौजी कहलाते है,
जब इस मा की सेवा करने को,
उस मा को बेबस छोड़ दिया,
पेड़ों के नीचे रात बिताते,
घर से मुख है मोड़ लिया,
बिस्तर की मीठी निंदो को छोड़,
जंगल में रात गंवाते है,
बड़ा मुश्किल है साहब,
ऐसे ही थोड़ी फौजी बन जाते है,
जब छोड़ के आगों की गर्मी,
बसते बर्फीली घाटी में,
गर्व हमे होता है जब,
मिट जाते है इस माटी पे,
अपना घर परिवार छोड़,
सरहद पे एकल आते है,
जब मस्तक कट के हम वीरों के,
मां भारती के आंचल में गिर जाते है,
बड़ा मुश्किल है साहब,
ऐसे ही थोड़ी फौजी कहलाते है,
अपने इन त्यागो का इश्वर,
एक ही हमें इनाम चाहिए,
भारत मा के लाल कहलाएं,
बस इतना सा नाम चाहिए।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"