प्रदुषण_ ढाल ही काल
मानव तुमने इस धरती का,
कैसा हाल है बना दिया,
जो कभी ढाल तुम्हारे थे,
उनको ही काल है बना दिया,
जो वायु सांसों में बसती,
वो अब सांसे छीन रही,
जो नदियां प्यास बुझाती थी,
वो भी है अब रंगीन हुई,
मानव काम तुम्हारे ऐसे,
हरियाली साफ उजड़ गई है,
जो नदियां कभी तृप्त करती थी,
खुद ही प्यासी पड़ गई है,
जिस वायु मे ऑक्सीजन था,
वो वायु विष के मद में है,
वायु के सहारे वो जहर आज,
घूम रहा इस जग में है,
जो प्रकृति थी गर्व से भरी,
मानव को जीवन देके,
वो अब खुद शर्म से झुक गई,
मानव को देख जनम देके,
हे मानव ये प्रदूषण को,
खुद का काल बनाते क्यों,
इस प्रदूषण पे विराम को,
क्यों ना आवाज उठाते तुम,
यदि अभी भी ना संभले,
वो वक्त भी आ जाएगा,
वायु में विष होगा और,
घर घर से कैंसर आएगा,
बंद प्रदूषण को करके,
जीवन सिद्ध बनाओ तुम,
खुद के प्राण बचाओ और,
पीढ़ी के प्राण बचाओ तुम।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"