कारगिल के वीर

मै मतवाला कलमोंवाला फिर से कलम उठाया हूं,
कारगिल के उस बलिदानी घाटी को लिखने आया हूं,

कारगिल के उस भूमि पे जो रक्त बहे थे झड़ने सा,
लेकिन फिर भी वीरों ने हिम्मत ना खोया लड़ने का,

शीश गिरे थे माटी पे, और रक्त बहे उस घाटी में,
आज दिखा दूं कितना ताकत था बूढ़े बाप के लाठी,

मां का एक अकेला बेटा दस दुश्मन पे था भारी,
उन वीरों के बलिदानों पे भारत सदा है आभारी,

घाटी में जो शीश गिरे उनका कोई कर्ज ना चुका सके,
क्यों कोई कवि ना ऐसा है जो सगों के दर्द को दिखा सके,

कोई दिखाए या ना लेकिन मैं आज दिखाने आया हूं,
उन वीरों के परिवारों का दर्द दिखाने को कलम उठाया हूं,

अब मेरी अगली पंक्तियां उन परिवारों को समर्पित है,
जिन परिवारों का कोई भी भारत मा पे अर्पित है,

दो चुटकी सिंदूर जहां मिल के रह गए उस माटी मे,
पत्नी के कंगन टूट के जब गिर गए कारगिल की घाटी में,

दो चुटकी सिंदूर की कीमत उस घाटी में दफन हुए,
पूछो उन माओं से जिनके बेटे कारगिल मे हवन हुए,

नव विवाह के दूल्हे भी हथियार तांग के कंधे पे,
भारत मां की रक्षा को एक दम से पहुंच गए रण मे,

ताजी मेहंदी हाथों की कैसे सिंदूर को पोछेगी,
धरती के किस कोने में अपने कोहिनूर को खोजेगी,

ताज़ा काजल आंखों का आंसू से छूट गया देखो,
उस दुल्हन का रिश्ता कारगिल मे ही रूठ गया देखो,

मां के उस दामन का कीमत कोई चुका नहीं सकता,
उस बूढ़े बाप की लाठी फिर कोई लौटा नहीं सकता,

उस बहन कि राखी लौटाना अब किसी के बस की बात नहीं,
दुल्हन की सिंदूर को लाना किसी के बस की बात नहीं,

जिन बेटो को भारत ने खोया वो सूरज के टुकड़े थे,
सरहद पे मरने वाले सब शिव शंभू के मुखड़े थे,

नमन तुम्हे सत सत हे वीरों हे भारत मां की संतानों,
इश्वर से ये विनती है तुम बार बार भारत में जन्मों,

हे आकाश के तारों तुम सदा ही जग मग करते रहना,
भारत की तुम शान रहोगे सदा हिंद को ऊपर रखना।।

                                           - आदित्य कुमार
                                                 "बाल कवि"





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