विदाई बेटी की

हर रशम हुआ पूरा अब बेटी को विदा करना है,
आंगन की फुलवाड़ी को आंगन से जुदा करना है,

आंखों में आंसू लिए पिता बेटी को विदा करे कैसे,
अपनी फूल सी बेटी को आखिर खुद से जुदा करे कैसे,

जीवन में कभी ना रोया जो उस पिता की आंखे भर आई,
मां भी रो रही देख के बेटी को जब गीत विदाई की गाई,

बेटी बस पूछ रही पापा क्या दूर मुझे कर दोगे तुम,
बोलो क्या बेटी होने का आखिर हक मेरा ले लोगे तुम,

पापा के जुबां है बंद पड़े बस आंखों में जलधारा है,
हर क्षेत्र का जो रहा विजेता बेटी के प्रश्नों से हारा है,

हिम्मत कर के बोले वो पिता बेटी कोई हक ना मैं लूं तेरा,
ईश्वर से दुआ है बेटी तू रहना मेरी हर जन्म में बाप रहूं तेरा,

ओ बेटी हृदय पे रख के पत्थर तुझको विदा कर रहा हूं,
दुनिया की ये ही रीति है तुझे इस घर से जुदा कर रहा हूं,

जा बेटी खुश रहना ये आशीष तुझे हम देते है,
बेटी की विदाई हो गई अब कविता पे विराम हम लेते है।।

                                           - आदित्य कुमार
                                               "बाल कवि"


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