हक फौजी का

शपथ किया हूं वीरों पे आज ऐसी कविता लिख दूंगा,
यदि दिल को छू ना सका तुम्हारे अपना नाम बदल दूंगा,

जिस ठंडी मे हम घर में हीटर कि गर्मी पाते है,
उस ठंडी मे बिन कम्बल के वो दिन रात बिताते है,

जिस ठंडी मे हम अपने घर में शिशक रहे होते,
जिस ठंडी मे थोड़ी सी सर्दी होने पे हम है रोते,

उस ठंडी मे जम जाते हैं लाश भी उनके बरफों मे,
उस ठंडी मे बंद हो जाते सांस भी उनके बरफों मे,

हम अपनो के पास मे होते है वो अपनो से दूर है हो जाते,
केवल हम सब की रक्षा को वो लौट कभी ना है पाते,

हम जिन आंचल में रहते वो उस आंचल की रक्षा करते है,
मै गर्व से कहता हूं मेरे फौजी मर के भी कभी ना मरते है,

जिस गर्मी में हम A.C. की ठंडी हवा में रहते है,
वो गरमी में रेगिस्तानों में भारत मा की जय कहते है,

हम खुश रहे सदा घर में इस खातिर घर छोड़ निकलते है,
मेरे हिंद के फौजी गर्मी सर्दी हर वक्त बॉर्डर पे रहते है,

आज आए कुछ लोग है वो इनके बलिदान को भूल गए,
रह के हिंदुस्तान में वो है हिंदुस्तान को भूल गए,

इनका हक कम कर डाला है भारत की संपत्ति से,
बलिदान का ये इनाम हो तो इस बात से मुझे आपति है,

शर्म करो हे गद्दारों मानव का अधिकार है खोया तुमने,
रक्षक का जीवन खा गए, हिंद का जीवन है खाया तुमने,

कानून नया लाते हो तुम, वीरों की कुर्बानी को खाने का,
है कसम खाया क्या तुमने भारत को बरबाद बनाने का,

विनती है हाथ जोड़ के उन बलिदानों के संग मे ना खेलो,
जिनसे कुर्बानी बर्बाद हो तुम वो कानून वापिस लेलो,

यदि अमल ना किया कविता पे नरक भी ना तुम पाओगे,
वो दिन दूर नहीं होगा गद्दारों में अव्वल पे आजाओगे।।

                                                 - आदित्य कुमार
                                                      "बाल कवि"















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