गांडीव उठाना ही होगा।
देख के रण में खूनी हालत अर्जुन थोड़ा भटक गए,
अपनों पे शस्त्र उठाना था मोह बंधन मे थे लटक गए,
बोले माधव से अर्जुन गांडीव उठा ना पाऊंगा,
अपनों पे शस्त्र उठाया तो मै जीते जी मर जाऊंगा,
बोले माधव हे अर्जुन गांडीव उठाना ही होगा,
पापियों ने पाप किए है बहुत तुम्हे शीश गिराना ही होगा,
सुनके माधव की ये बातें कुंती पुत्र को ना भाया,
माधव से पूछने के खातिर उसके मन में प्रश्न आया,
हे माधव तुम देख रहे हो समक्ष मेरे सब अपने है,
मेरे बड़े धनुर्धन बनने के गुरु द्रोण ने देखे सपने है,
एक पितामह भीष्म हमारे मुझपे जान लुटाते थे,
मुझको खरोच भी आए तो वो दौड़े दौड़े आते थे,
माता गांधारी मुझ पे बेटे सा प्यार लुटाई थी,
गोद में अपने बिठा के वो हाथों से मुझे खिलाई थी,
कैसे तुम कह सकते हो माधव इन पे शस्त्र उठाऊं मै,
अपनों का हत्यारा बनने से अच्छा होगा की मर जाऊं मै,
माना दुर्योधन ने माधव अन्याय किया हम सबके साथ,
किन्तु जाने दो कृष्ण कन्हैया करता हूं उनको मै माफ,
एक दुर्योधन के कारण क्या कुल का नाशक बन जाऊं,
आज जिन्होंने ने पाला क्या उनका ही विनाशक बन जाऊं,
देख के शिष्य की उदारता त्रिलोकी गर्वित हो गए थे,
इतना धैर्य पार्थ मे देख के मन में हर्षित हो गए थे,
लेकिन ये रण की भूमि है अर्जुन तुमको तो उठना होगा,
शत्रु खड़े समक्ष तुम्हारे गांडीव के संग दिखना होगा,
ये सोचे माधव और फिर अर्जुन को लगे यूं समझाने,
भक्त भ्रमित था हुआ मार्ग से लग गए गीता ज्ञान सिखाने,
हे अर्जुन तू क्यों माया मे अपना यहां नहीं कोई,
क्या भूल गया कि बीच सभा में कैसे द्रौपदी रोई,
उसी सभा में गंगापुत्र बैठे थे बड़े निराओ से,
पौत्रवधू के इज्जत खातिर क्यों ना आए बचाव मे,
एक ना दुर्योधन की ग़लती एक ना दुशासन का पाप,
बैठे जो दरबार में शक्तिशाली होके भी थे चुप चाप,
मौन पड़े थे गंगा के बेटे और मौन थे गुरु द्रोण,
आज वहां नारी की रक्षा के खातिर आगे आता कौन?,
तुम अपनो की चिंता ना करना ये कृष्ण तुम्हारे साथ मे है,
हर एक जीवन हर एक मृत्यु सब कुछ मेरे हाथ में है,
मै ही रचनाकार यहां का मै ही विनाश करता हूं,
एक ओर से वार मै सहता हूं एक ओर से मैं ही लड़ता हूं,
माधव की वाणी सुनके अर्जुन को थोड़ा ना भाया,
माधव से पूछने के खातिर फिर से मन में प्रश्न आया,
हे मुरलीधर ये बतलाओ आखिर क्या परिचय तुम दोगे,
हो कौन जो खुद को इश्वर कहते खुद का नाम बताओगे,
सुनके प्रश्न शिष्य का माधव ने अपना रूप विकराल किया,
रौद्र रूप माधव ने लिया तो श्रृष्टि को था काल दिखा,
बोले माधव हे अर्जुन अपना कौन सा नाम बताऊं मै,
राम कृष्ण नरसिंह बनुं या परशुराम बन जाऊं मै,
इस धरती पे जो कोई है सब कुछ तो मै स्वयं ही हूं,
पेड़ के पत्ते अग्नि जल वायु आकाश कण कण मे हूं,
परिचय मेरा कैसे लोगे कौन सा परिचय दूं तुमको,
ब्रह्मा विष्णु दुर्गा काली सब कुछ लोग कहते मुझको,
अब मोह त्याग गांडीव उठा पाप का करना है विनाश,
धरती को पाप से हल्का कर धरती को है तुझ से अब आस,
अर्जुन की आंखे खुल गई जब प्रभु ने अपना रूप दिखाया,
हर मोह के बंधन समझा पार्थ जब कृष्ण ने गीता ज्ञान सिखाया,
धरती को और पापी को दोनों को पाप से मुक्त किया,
कौरव का अंत किया धरती से फिर से पुण्य से युक्त किया।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"