प्रकृति से बातें

हे मानव अब बस भी कर,
अब कितने वृक्ष गिराएगा,
कितनी नदियां दूषित कर,
इस प्रकृति को और सताएगा,

महसूस नहीं करता है तू,
इन वृक्षों के रोने का,
इनके बिन जीवन ना संभव,
एहसास तुझे कब तक होगा,

रात में इन वृक्षों का रोना,
एक पल बस महसूस करो,
नदियों का यूं रोज़ शिशकना,
एक पल बस महसूस करो,

एक पल बस महसूस करो,
उस प्रकृति मां की पीड़ा को,
धरती के खुशहाली के संग,
करते हो तुम क्रीड़ा जो,

इन वृक्षों का रोना एक दिन,
महा तबाही लाएगा,
नदियां जिस दिन उग्र हो गई,
कोई ना बच पाएगा,

बन्द करो धरती को ऐसे,
धीरे धीरे तड़पाना,
एक बार बस एक बार,
वृक्षों नदियों से बतियाना।।

                    - आदित्य कुमार
                         (बाल कवि)

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