हां वो भगत सिंह था।।

आंख में आंसुओं का समंदर बना,
जिस दिवस लाल भारत का बलिदान चढ़ा,
जिसने झोकी जवानी वतन के लिए,
देश की रक्षा करते शहीद हो गया,

जिसने त्यागा था सब कुछ हमारे लिए,
अपना जीवन भी हम सब पे अर्पित किए,
चूम के चढ़ गया फांसी के फंदे पे,
उसके खातिर दो आंसू गिराने चले,

लाल था हिंद का मौत से भय ना था,
मौत की धमकियों से डरने वाला कहां,
काल को भी रुलाया था जिस लाल ने,
लाल मर के भी वो मरने वाला कहां,

अंत था पास में पर ना था वो डरा,
देश पे मरना सौभाग्य है कहता था,
माटी की धड़कनों में धड़कता है वो,
हां वो कालों का काल भगत सिंह था।।

                                  - आदित्य कुमार
                                       (बाल कवि)


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