संस्कृत और संस्कृति

ऋषि-मुनि, वेदों से ये भारत अस्तित्व में आया है,
मुझे गर्व है मेरी संस्कृति ने ये भारतवर्ष बनाया है,

हर भाषा की जननी संस्कृत और विश्व गुरु है मेरा भारत,
दुनिया को आगे ले जाने में भारत को हासिल है महारथ,

आयुर्वेद के उपचारों से मृत को भी मिलता था जीवन,
वो भारत तो भारत ही था जिसमे बसता इश्वर का मन,

पर आज यहां कलयुग में उस भारत का कोई मोल नहीं,
संस्कृति को भूल रहे है सब संस्कृति हो गई गोल कहीं,

संस्कृत को भूल जाने को नवयुग का पहचान बताते है,
अंग्रेज़ी वाले पढ़े लिखे, संस्कृत क्यों मूर्ख कहाते है?

संस्कृत तो संस्कृत थी हिंदी को भी बेचने निकले है,
स्वर्ग सी भाषा छोड़ के अब ये नरक देखने निकले है,

संस्कृत ही सबकी जननी है और ये भारत है विश्वगुरु,
स्वीकार करो और चलो बढ़ो संस्कृत को करने फिर से शुरू,

हिंदी और संस्कृत भाषा को मिलके फैलाना ही होगा,
वेदों की कितनी शक्ति है दुनिया को दिखलाना ही होगा।।

                                      - आदित्य कुमार
                                           (बाल कवि)




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