संकल्प- धरती बचाने का
चीख रहे है वृक्ष और नदियां,
छीनो नहीं हमारा जीवन,
हम है मूल आधार तुम्हारे,
मत यूं खत्म करो अब जंगल,
जब तुम धूप में भीगे बदन,
छांव हमारा पाते हो,
जब तुम भुख से हो बेचैन,
तोड़ मेरे फल खाते हो,
सांस भी मैं ही देता हूं,
अस्तित्व तुम्हे तब मिलता है,
फिर भी ना जाने क्यों,
मानव मेरा विनाश ही करता है,
नदियां चीख रही है मानव,
प्यास बुझाने वाली हूं,
जब प्यास से तड़प हो जाते,
तो मैं जान बचाने वाली हूं,
लेकिन इसी नदी को तुमने,
प्यासी कर दिखलाया है,
जो प्यास बुझाती थी नदियां,
प्यासी उसे बनाया है,
जो कोई नहीं कर सकता था,
मानव ने कर दिखलाया है,
जो जीवन देने वाला था,
उसका ही जीवन खाया है,
जड़ा गौर से सोचो,
क्या पेड़ों बिन जीवन मुमकिन है,
केवल पेड़ और नदियां है,
जिससे धरती पे जीवन है।
जितना हो तुम पेड़ लगाओ,
नदी तालाब को स्वच्छ बनाओ,
चलो अब ये संकल्प उठाओ,
मिलके अब धरती को बचाओ।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"