इसलिए मुर्दों सा हम बेजान पड़े।

होठ खामोश थे नैन भी रो रहे,
जलियांवाला की हालत बयां मैं करू,
किन्तु कैसे करू कुछ समझ ना सकूं,
क्या करूं कैसे बोलो हौंसला मैं रखूं,

प्रश्न है तो बहुत पर मैं मौन खड़ा,
जैसे मुर्दा कोई हो बेजान पड़ा,
कोई मां पूछती कोई पिता पूछता,
क्या कहूं मैं कहूं कुछ ना है सूझता,

मां पूछ रही बेटा कैसा होगा,
पूछता है पिता अब बड़ा होगा ना?
क्यों हो चुप तुम खड़े बोलो ना बोलो ना,
हे बाल कवि चुप्पी को खोलो ना,

बांध के हौंसला मैंने मां से कहा,
तेरा बेटा बहुत है बड़ा हो गया,
है बहुत खुश वो मां,
हैं बहुत खुश पिता,
सुनके, बेटा बहुत हो गया है बड़ा,

और भी ऐसे थे जिनके प्रश्न बड़े,
मैं ना कुछ कह सका नैन भीगे पड़े,
क्या कहूं उनको को जो मेरे सम्मुख खड़े,
इसलिए मुर्दों सा हम बेजान पड़े।।

                                 - आदित्य कुमार
                                      "बाल कवि"







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