जीत का जश्न। jeet ka jashn
बैठे क्यों हो मौन कहो,
अब जीत नहीं पाना है क्या?,
मंजिल तो अब बहुत पास है,
आगे ना जाना है क्या?
इतनी जल्दी हार ना मानो,
मंजिल पास बहुत है जी,
विश्वास दिलाया जिनको तुमने,
उनको आस बहुत है जी।
देह का खून बना अंगारे,
और कांटों को फूल,
हार किसे कहते है प्यारे,
जाओ ये तुम भूल,
मांझी सा जिद्दी बन जाओ,
पर्वत काट के राह बनाओ,
इतिहास के पन्नों में छप जाओ,
अपनी अलग पहचान बनाओ,
मंजिल पे जाके रुकना,
जीत की अब तुम जश्न मनाओ।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"
Comments
Post a Comment