पांव को अब तुम रुकने ना दो।
कांटे हो या खड़ा हो पर्वत,
या हो आगे स्वयं समंदर,
ना निराश करो मन को,
मन में अटूट विश्वास जगाओ,
पांव को अब तुम रुकने ना दो चलो निरंतर चलते जाओ।।
मत यूं बैठो पांव पसारे,
मत यूं आस मे रहो ओ प्यारे,
निज मंजिल पे स्वयं पहुंचना,
परिस्थिति से लड़ते जाओ,
पांव को अब तुम रुकने ना दो चलो निरंतर चलते जाओ।
मौत बना दो चलो खिलौना,
बनो विशाल हो पर्वत बौना,
मंजिल कदम को चूम तुम्हारी,
कहे -"ए राही निखरते जाओ,
पांव को अब तुम रुकने ना दो चलो निरंतर चलते जाओ।।
मुठ्ठी में कर बन्द हार को,
अपनी जीत को स्वयं संवारो,
हार किसे कहते है राही,
जीवन में तुम भूल ही जाओ,
पांव को अब तुम रुकने ना दो चलो निरंतर चलते जाओ।।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)
Comments
Post a Comment