गरीबी इसे ही कहते है।
हाय रि गरीबी कैसा हाल कर डाला है,
दाने दाने के लिए कंगाल कर डाला है,
पैसों के बिना ये जीवन मात्र खेल बन गया,
कोई गरीबी से तंग होके फांसी चढ़ गया।
देखो किसी घर में कोई भूखे पेट सोया है,
देखो कोई बिना पैसा चिंता में ही खोया है,
कोई सोच रहा परिवार कैसे पालूंगा,
कोई सोच रहा कैसे चार पैसे लाऊंगा।
इन गरीबों के लिए तो कोई साथ ना खड़ा,
इन गरीबों के लिए तो कोई हाथ ना बढ़ा,
इन गरीबों के लिए तो डंडे रहते हाथ में,
जड़ा घर से बाहर जाके देखो ना फुटपाथ पे।
कोई तो लाचार बिना छत का सोया होगा,
कोई बच्चा भूख से तड़पता रोया होगा,
हमको ना पता चलता आंखे बन्द कर रहते है,
जी हां साहब बिल्कुल गरीबी इसे ही कहते है।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)