वीर शिवाजी_ इस सदी का सपूत
जब भारत मेरा कैद पड़ा था,
दुश्मन के जंजीरों में,
धरती का भाग्य बदलता था,
शत्रु के लिखे लकीरों से।
तब जन्म हुआ एक शेर का,
जो था स्वतंत्रता का प्यारा,
ना बढ़ने दे कभी भी शत्रु को,
उसका था स्वराज का नारा,
शेरनी का लाल था वो,
हां बड़ा कमाल था वो,
आदिलशाही अत्याचारों का,
शिवाजी काल था वो,
उम्र था बचपन मगर,
थे हौंसले बुलंद जी,
शत्रु से खेल खेलने में,
मिलता था आनंद जी।
पुणे का बनके जागीरदार,
प्रथम चरण को जीता था,
बहुत चरण थे शेष अभी,
वो विष को सुधा सा पीता था,
काल बने शत्रु काफी थे,
पर शिवा स्वयं महाकाल आया,
हर साजिश हुई रणनीति लगी,
पर कोई कुछ ना कर पाया,
आदिल शाह के अत्याचार से,
जब धरती थी डोल गई,
वीर शिवा जी की कृपाणें,
शब्द विद्रोह के बोल गई,
आदिल शाह जब कांप गया था,
वीर शिवाजी के भय से,
तब सोच मे पर था गया,
की आखिर इसे हराऊंगा कैसे,
भेजा अपने सेनापति को,
जिसका अफजल खान था नाम,
बाघनख़ से चीर वदन को,
शिवा ने कर दिया काम तमाम,
शुरू हुआ रण बारी थी,
बेटे का फ़र्ज़ निभाने की,
अपनी धरती आजाद करा,
शत्रु को दूर भगाने की,
बखूबी इस योद्धा ने,
अपना पुत्रधर्म निभाया था,
हर दुष्टों से मां की रक्षा करने,
वीर शिवाजी आया था,
हर सदी मे धरती मां के लिए,
कोई वीर सपूत अवतरित हुआ,
इस सदी का बेटा वीर शिवा,
धरती के लिए था ढाल बना।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)