राणा का चेतक

वो देख जड़ा लहराता सा राणा ले चेतक दौड़ रहा,
राणा हर वार की शक्ति से अभिमान मुग़ल का तोड़ रहा,

रक्त गिर रहे इधर उधर रणभूमि मे जहां जिधर,
धरा नहाई है खूनों से देखो जहां भी पड़े नजर,

हैं त्राहि त्राहि का शोर मचा,
राणा मे काल घनघोर दिखा,
मृत्यु से बचके भाग रहे,
राणा से अरि सब कांप रहे।

राणा का घोड़ा मतवाला,
है किसकी अब सुनने वाला,
चेतक का क्रोध जागता जब,
दुश्मन को उठा पटकता तब,

मस्तक पे दोनों पांव रखे,
दुश्मन के उड़ा के परखच्चे,
देखो वायु संग लहराता,
चेतक अपना वापिस आता,

राणा ने कृपाण उठाया,
जब बहलोल खान था आया,
अस्सी किलो की थी शमशीर,
दुश्मन को तब डाला चीर।

फिर चेतक राणा ले दौड़ा,
घायल हुआ शेर दिल घोड़ा,
तब भी पार किया एक खाई,
जिसकी थी काफी गहराई,

राणा को कर दिया सुरक्षित,
तब जाके कहीं हुआ वो मूर्छित,
घायल चेतक गिरा धरा पर,
राणा को वो गया रुलाकर,

जिसका घोड़ा चेतक जैसा,
उसको दुश्मन से भय कैसा,
जिसका घोड़ा काल है लागत,
सोचो उस राणा की ताकत।

            - आदित्य कुमार
                 (बाल कवि)

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