मैं पैसा हूं (कविता) ।। mai paisa hu (poem)

मैं पैसा हूं दोस्त भी और दुश्मन भी,
मैं पैसा हूं मौत भी और जीवन भी,
ईमान भी बेईमान भी,
अनजान भी पहचान भी,

पैसे के खातिर भाई भाई और बाप बेटे मे फुट बढ़ा,
पैसे के खातिर मानव कोई ईश्वर को भी लूट पड़ा,
मैं पैसा हूं अमीर बना देने वाला,
मैं पैसा हूं फकीर बना देने वाला,

मेरी है पहचान बहुत ही हर मानव मे दिखता हूं,
हर दिल को मैला कर देता लालच के हाथों बिकता हूं,
मैं पैसा हूं हैवान बना देने वाला,
मैं पैसा हूं भगवान बना देने वाला,

अपनों को भी बना मैं देता हूं अपनो का ही दुश्मन,
मेरी आदत यदि लगी तो मैला कर दूं निर्मल मन,
मैं पैसा हूं मानवता का हत्यारा भी,
मैं पैसा हूं हर एक मानव का प्यारा भी,

जीवन को बर्बाद भी कर दूं जीवन को आबाद भी कर दूं,
पैसा मेरा नाम है सुन लो सज्जन मे दुर्जनता भर दूं,
मैं पैसा हूं बिन पेट का भोजन करता हूं,
मैं पैसा हूं हर मानव के दिल में बसता हूं,
मैं पैसा हूं कमाल भी खुशहाल भी,
मैं पैसा हूं काल भी विकराल भी।।

                                  - आदित्य कुमार
                                       (बाल कवि)


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