जी हां मैं कविता हूं।

लाखों बार लड़ना पड़ता है,
कितनी बार मरना पड़ता है,
किन्तु झुकता नहीं हूं क्योंकि,
सच के लिए मुझे अड़ना पड़ता है।

किसी सीता के लिए मैं लक्ष्मण का रेखा हूं,
लाखों द्रौपदी को शर्मसार होते देखा हूं,
कभी मौन कभी आवाज उठाने वाला,
मैं इस विधाता का एक लेखा हूं,

कभी राजनीति पे लड़ता,
कभी एक दंगे मे मरता,
कभी बेझिझक झूठ से लड़ लूं,
पर कभी सच कहने से डरता,

पर जब अस्तित्व याद आता है,
मुझमें क्रांति जाग जाता है,
कभी ऐसा प्रलय लेके आता हूं,
फरेब खुद भाग जाता है,

अन्याय का मैं न्याय हूं,
कलमों का व्यवसाय हूं,
जी हां मैं कविता,
हर कण की सच्चाई हूं।

           - आदित्य कुमार
               (बाल कवि)


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