बचो क्रोध से

हर क्रोध तो घातक होता है,
निज काज ना सार्थक होता है,
जब लेता क्रोध विकराल रूप,
बन जाता है ये काल रूप।

अपनों को अपनों से क्रोध,
गुम होता विनती अनुरोध,
ये चिंता का विषय बना है,
दे चेतावनी समय रहा है,

भाई भाई का बन के दुश्मन,
बेटे बाप मे होती अनबन,
हर अपने का खून बहा कर,
अपनों के खूनों से नहा कर,

क्रोध खुशी से झूम रहा है,
विनाश हो मालूम रहा है,
विश्व क्रोध ने जकड़ लिया है,
हर मस्तिष्क को पकड़ लिया है,

इसका है बस एक उपचार,
शांत हो मन व उचित व्यवहार,
मन मस्तिष्क पे पाओ काबू,
बचो क्रोध से प्यारे बाबू।

         - आदित्य कुमार
              (बाल कवि)


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