मानव- तार वृक्ष
जिसको झुकना आता है,
अपनी ग़लती को माने जो,
जिसमे है नर्म हृदय धड़के,
ये विश्व उसे भी जाने तो।
अब वक्त है उसे बदलने को,
जिन्हे तार वृक्ष बनना आता,
जिनमे अभिमान है भरा बहुत,
ग़लती पर भी तनना आता,
जो सबको नीच समझकर के,
बस तार सा ऊंचा जाता है,
उसको लगता है ऊंचे होने,
कारण ही पूजा जाता है,
पर भूल गए जिस वृक्ष से,
यदि लाभ नहीं मिलता है तो,
वो ऊंचा हो कितना भी,
उसको काट गिराया जाता है।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)
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