नोट गुलाबी
जेब हमारी तरस गई थी,
नोट गुलाबी पाने को,
पर ना पास हमारे आती,
जैसे हम अनजाने हो,
ये तो बस थी छुपी हुई,
उन सेठों के तहखानों में,
गायब तो ये पड़ी हुई थी,
दुनिया के अफसानों से।
रंग गुलाबी दिल को मेरे,
था हर्षित कर देता ये,
फिर हम थे दुखी वो हर्षित था,
ये जिसको भी हम देते थे।
जाओ नोट है विनती मेरी,
ईश्वर तुमको शांति दें,
तुमने तो सहयोग किया था,
काले धन की क्रांति में।
हो गए हो खुद तुम शहीद,
लड़ के इस संग्राम को,
भारत कभी नहीं भूलेगा,
रंग गुलाबी नाम को।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)