*हे कर्म धर्म के सारथी*

हे कर्म धर्म के सारथी,
रथ को सुपथ दिखाना है,
जो राह हो उचित हो जो,
उस राह पे ही जाना है,

ना है भटकना मार्ग से,
करना है तय हर दूरी को,
हे कर्म धर्म के सारथी,
तेरी इच्छा जो हो पूरी हो।

तुम बनके खुद के सारथी,
उस राह में रथ ले चलो,
हे कर्म धर्म के सारथी,
कर्तव्य के पथ पे रहो,

हो सोच मे सच्चाई और,
जीवन सदा ईमान हो,
हे कर्म धर्म के सारथी,
तुम स्वयं की पहचान हो।

          - आदित्य कुमार
               (बाल कवि)





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