कवि की मांग

हे मां शारदे मुझे आशीष इतना देना तुम,
अपने कमल चरण में मां इस भक्त को भी लेना तुम,

मेरी कलम को देना ये वरदान ओ मां शारदे,
सदा ही लिखे राष्ट्र प्रिय गान ओ मां शारदे,

वीरों की कुर्बानी को कलम मेरी दर्शाए मां,
अन्याय के विरुद्ध ये क्रांति सदा जगाए मां,

और हो सदा जुबां पे मीठे-मीठे बोल मां,
कलम सदा ही रोके मईया हो गलत कभी जहां,

जो यदि कवि कभी भी चुके जिम्मेदारी से,
जो यदि कवि कभी भरे जो अहंकार मे,

जिस कवि को भय लगे कभी जो क्रांति लाने से,
जिस कवि को डर हो लगता राष्ट्र पे मिट जाने से,

उस कवि को जीने का ना कोई अधिकार हो,
उस कवि की गीत विश्व को नहीं स्वीकार हो।।

मां ये मांग है कवि की इसको स्वीकार कर,
मां शरण मे लेके हमको भक्त का उद्धार कर।

                     - आदित्य कुमार
                          (बाल कवि)


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