योद्धा या गीदड़?
जो गीदड़ खरगोश मार कर,
खुदको समझ रहे खूंखार,
दो कौड़ी का ज्ञान ना इनको,
और ये बनते है होशियार,
शेर से पंगा लेते है ये,
बनना है इनको राजा,
लेकिन इनको काल है घेरे,
ये ना इनको अंदाजा,
करो इंतेज़ार ओ गीदड़,
शेर के जग जाने का,
ऐसा प्रलय मचाएगा वो,
ना राह मिले भाग पाने का।
दूर से देकर गीदड़ भभकी,
कायर इठलाते है,
जो योद्धा होते है बस,
वो ही रण मे आते है।
आओ रण में इंतेज़ार है,
शेर है तब तक सोता,
जब तक सामने आते ना,
एहसास नहीं है होता।
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)