ॐ शांति (ओडिशा रेल दुर्घटना)

बड़ी पीड़ादाई थी वो यात्रा,
जिसने रात भी ना देखा,
अंधेरे से पहले ही,
खींच गई मौत की रेखा।

किसी का पहला,
तो किसी का आखिरी सफर था वो,
जहां आखिरी सफर हुई,
ओडिशा नगर था वो।

माओं ने देखा बच्चे बिलखते,
तड़पते दुनिया छोड़ गए,
अपनों ने अपनों को देखा,
जब सामने दम तोड गए।

कुछ कर सके कैसे करे,
खुद की भी मृत्यु पास थी,
कुछ पल अधिक जीवित रहे,
पर मिट गई अब आस थी।

ईश्वर के श्री चरणों में,
उन सब को मिले स्थान,
ॐ शांति ॐ शांति,
देना शांति हे भगवान!

         - आदित्य कुमार
              (बाल कवि)





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