कर्ण- कौरव या पांडव
ए कर्ण बताओ आखिर तुम कौरव हो या हो पांडव,
जल जैसा शीतल हो या हो तुम शिव शंभू का तांडव,
महाभारत की रण भूमि में किसका पक्ष लिया है,
कौरव हो या हो पांडव अब तक ना स्पष्ट किया है,
गाथा सुनी तुम्हारी जब जब बस इतना ही पाया,
दुर्योधन के साथ खड़े तुम उसका साथ निभाया,
इस दृष्टि से तो लगता है तुम भी कौरव ही थे,
मगर अगर तुम कौरव थे तो पांडव कैसे जीते?
क्युकी बस अर्जुन के सिवा तुमसे ना कोई टकराता,
और यदि चार भाई ना होते लड़ने कौन फिर आता,
माधव ने तो प्रण ही लिया है युद्ध नहीं लड़ना है,
उनके हाथों किसी भी योद्धा को ही नहीं मरना है,
तब तो लगता है कि तुम पांडव के पक्ष लड़े थे,
इसलिए तो तुम्हारे हाथों कोई योद्धा ना मरे थे,
सबको को पता था शौर्य तुम्हारा भला कौन लड़ता तुमसे,
कृष्ण और अर्जुन के सिवा हर योद्धा था डरता तुमसे।
तुमने दिया बलिदान ए कर्ण बस धर्म की जीत हो जाए,
वरना कृष्ण के सिवा वहां फिर तुमको कौन हराए?
- आदित्य कुमार
(बाल कवि)
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