स्वतंत्रता दिवस पर कुछ शब्द
परम आदरणीय अतिथि महोदय, प्राचार्या महोदय, समस्त शिक्षकगण एवं मेरे सभी साथियों को आज स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं।
आज यहां हम सब हमारे देश के एक महान गौरवशाली राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त यानि स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए उपस्थित है। आज हम सब अपना 77 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे है।
आज देश को स्वतंत्र हुए 76 वर्ष पूरे होने के बाद हम अपना 77 वा स्वतंत्र वर्ष मे प्रवेश कर रहे है।
आज से ठीक 76 वर्ष पूर्व यानि 15 अगस्त 1947 को हमने विदेशी शासकों एवं विदेशी लुटेरों से मुक्ति पाया था। आज का दिन वो दिन है जिस दिन लाखों स्वतंत्रता सेनानियो के मुख पे खुशी की मुस्कान प्रफुल्लित हो गई थी, ये सोचकर कि उनका बलिदान सफल हुआ। आज के दिन आदरणीय प्रधानमंत्री जी लाल किले पे हमारे अत्यंत पूजनीय एवं राष्ट्र की शान एवं गरिमा राष्ट्रध्वज तिरंगा को फहराते है। विद्यालय, दफ्तर, कोचिंग संस्थान एवं कई निजी/ सरकारी संस्थाओं में स्वतंत्रता दिवस को धूम धाम से मनाया जाता है।
आज हम जिस स्वतंत्रता दिवस को मना रहे है 1947 से पहले हमे इसे मनाने का हक नहीं था मगर हमारे देश के महान क्रांतिकारी वीरों ने हमे ये हक दिया कि हम भी आजाद हवा में अपनी आजादी का जश्न मनाए।
लगभग सन 1857 से शुरू हुई इस स्वतंत्रता संग्राम का अंत कई क्रांतिकारियों के बलिदान के साथ हुआ। इस क्रांति मे पुरुषों के संग नारियों का भी अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा। हमारे देश की वीरांगना लक्ष्मी बाई का नाम वीरांगनाओं की सूची में अक्सर प्रथम स्थान पर आता है। आजादी की मंजिल को पाने के लिए दो रास्ते अपनाए गए एक जिसमे क्रांतिकारियों द्वारा शत्रु को उनके ही तरीके से खदेड़ने कि तैयारी हुई वहीं दूसरे तरफ बिना किसी हिंसा के शत्रु का हृदय परिवर्तन कर उन्हे भारत से जाने के लिए विवश करने की तैयारी हुई। एक तरफ शहीद-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे 25-25 वर्ष के वीर सपूतों ने अपनी आहुति देकर आजादी कि मंजिल चुमी, वही महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू ने अहिंसा का मार्ग अपनाकर भारत की आजादी मे अपनी भूमिका निभाई! आजादी की लड़ाई केवल अंग्रेज़ो से जीत पाने की ही नहीं बल्कि जब जब विदेशियों ने हमारे देश को लूटने का प्रयास किया तब तब छिड़ी थी, किन्तु उस पल आपसी एकता ना होने के चलते हम काफी बार विफल हो जाते थे। लेकिन शत्रु को जीत भी ऐसी मिलती को वो उस जश्न को खुशी से मना तक नहीं पाता था। पर फिर भी हम सफलता नहीं पा पाता थे, यह एक दुख की बात थी, एक चिंगारी उठती मगर सहायता रूपी ईंधन ना मिलने के कारण बुझ जाती किन्तु 1857 की उठी चिंगारी फिरंगियों के लिए एक ज्वाला साबित हुई! भारत का हर एक वीर सपूत अब अपने भारत मां को बेड़ियों से आजाद करना चाह रहा था। और तब ये चिंगारी एक ऐसे भयानक आग में तब्दील हो गई जिसका दमन अंग्रेज़ो के भारत से खदेड़ने के साथ ही हुआ। मेरे शब्दों में शायद आपने एक बात गौर करी हो। की आपसी एकता ना होने के कारण हमारा देश हमेशा दुष्टों के प्रभाव में आ जाता था। उस समय अधिकतर भारतवासी भोलेभाले थे, और अधिक छल छलावा नहीं समझ पाते थे, इस कारण एक लंबा अरसा उन्हें विदेशियों कि गुलामी में गुजारना पड़ा। हमारे वीर शहीदों ने जाते जाते हमे एक संदेश दिया था:- "जो भूल इतिहास में हुआ उसे फिर मत दोहराना, अपने इस स्वतंत्र राष्ट्र को सदा स्वतंत्र ही रखना अब दुबारा इसे कभी किसी के परतंत्र का मोहताज न बनाना।" आज हम जिस आजाद देश में आजादी से सांसे ले रहे है वो उन्हीं वीरों की देन है। इन दिनों भारत में धार्मिक मतभेदों के चलते हम अपने देश के विकास के पथ मे एक विघ्न साबित हो रहे है,
आपसी लड़ाई में जो भी नुकसान हो रहा है वो किसका हो रहा है? ये हम नहीं समझ पा रहे, लेकिन हमे ये याद रखना होगा कि "यदि राष्ट्र सम्मानित हो सम्मान हमारा भी होगा, यदि राष्ट्र पर आंच आए नुकसान हमारा ही होगा।" हम आपसी एकता ना होने के चलते पहले भी गुलाम रह चुके है बड़ी कठिनाई से हमने दुबारा आजादी पाया था, पर अब यदि फिर से वही भूल करेंगे तो अब हमे आजाद कराने के लिए कोई भगत सिंह या सुभाष चन्द्र बोस जैसे अब कोई अमर क्रांतिकारी लौट कर नहीं आएंगे, क्युकी इश्वर बार बार अवतार नहीं लेते अब हमे खुद एक होना होगा अपने राष्ट्र को सदा एक बहुमूल्य धरोहर की तरह सहेज कर रखना होगा ताकि जब ऊपर हमसे कोई क्रांतिकारी भारत के बारे में पूछे तो हम गर्व से कह सके कि आपका दिया हुआ भारत आज भी सुरक्षित है और रहेगा। इसलिए हम ये प्रण करते है कि हमे उनके दिए बलिदान की कदर करते हुए उन्हें सदा इस चीज से गर्वित करना है की जो भरोसा उन्होंने अपने आजाद भारत के आजाद वीरों पे किया था वो भरोसा बिल्कुल अटूट है और हम कभी उसे टूटने नहीं देंगे।
कभी अपने राह से नहीं भटकेंगे। सदा राष्ट्र सेवा के लिए तन मन धन सब अर्पित कर देंगे। हम वचन देते है उस खुदीराम बोस को जिन्होंने मात्र 14 वर्ष की उमर मे फांसी का फंदा चूमा था, हम वचन देते है उस भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु जैसे अन्य सभी अमर वीर बहादुर क्रांतिकारियों को जिन्होंने फांसी का फंदा आंखों के सामने होते हुए भी इन्कलाब जिंदाबाद का नारा लगाया था, जिन्होंने अपनी भरी जवानी हमारे लिए कुर्बान कर दी।
आज भारत के बच्चे बच्चे मे अपने देश के लिए प्राण तक समर्पित करने का जोश भरा है क्युकी हम उन वीरों की धरती से है जिस धरती के लाल महाराणा प्रताप जब युद्ध में निकलते थे तो 80 किलो के भाले 75 किलो के कवच एवं 2 तलवारों के साथ कुल 210 किलो का वजन लेकर निकलते थे और अपने उसी भाले के साथ हल्दीघाटी के रणभूमि में दुश्मन को उसके घोड़े सहित दो भागों में काट डाला था, हम उस धरती से है जिसके लाल छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने बाघ नख से अपने दुश्मन को शेर की तरह चीर डाला था, हम उस धरती से है जिसके लाल सहाजी ने दुश्मन के मात्र उंगली दिखाने पर उसके दोनो हाथ शरीर से अलग कर दिए।
अब चंद शब्दों के साथ आप सभी से विदा लेने चाहूंगा की "प्रण करते है देश हमारा कभी गुलाम नहीं होगा,
जो आंख उठाकर देखेगा उसमे फिर प्राण नहीं होगा!
जय हिन्द जय भारत वंदेमातरम।