कौआ का दुख

कौआ दिनचर्या सिखलाता,
कांव कांव कर सुबह जगाता,
काला रंग है काली काया,
किसी को कौआ कभी ना भाया,

नभ का है ये कृष्ण सितारा,
उड़ता रहता बने आवारा,
जब ये कांव कांव करता है,
मानव जब इससे चिढ़ता है,

पत्थर तब चलते कौवे पर,
तब ये भागता वहां से उड़कर,
लोग सदा ये सोचा करते,
अशुभ है जब कौवे चिल्लाते,

मुख्य यही कारण सब कहते,
इस कारण कौवे को मारते,
पर समझो, कौवे के दुख को,
वहीं मिली वाणी है उसको,

कांव कांव का शोर मचाना,
तुमको सबसे भोर जगाना,
दिया प्रकृति ने उसे यही वर,
मत मारो कौवे को पत्थर!😔

        - आदित्य कुमार
             (बाल कवि)

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