शासन

फिर क्रांति का आरंभ करो,
जड़ा घूसखोरों को तंग करो,
कब देश मेरा विकसित होगा?
उनसे ये प्रश्न एक संग करो!

ना धन की कोई कमी यहां,
तो आखिर सब धन गया कहां?
किनकी जेबों को गर्म किए,
क्यों वो धन वापिस नहीं मिले?

है कौन यहां भ्रष्टाचारी?
जिनको पैसों की बीमारी
ना दुख जनता का दिखता है,
ना दिखती जिनको लाचारी!

निर्धन लोगों का दर्द भूल,
नोटों के बदौलत रहे फूल,
भूखे बच्चों की आवाजे,
जिनके कानों तक आ ना सके,
तो कान खोल के सुनो सभी,
शासन उनको ना देना कभी।

           - आदित्य कुमार
                (बाल कवि)
            

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