जनता ही सर्वोच्च विधाता

जनता ही सर्वोच्च विधाता
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वर्षों से सही गुलामी पर अब वक्त हुआ,
राजा के प्रति है रुख जनता का सख्त हुआ,
अब और नहीं बस बहुत खेल शासन के खेले,
वर्षों वर्षों तक राज कर लिया स्वयं अकेले।

शायद जनता को अब ये मंजूर नहीं,
गणतंत्र अधिक अब और दिनों तक दूर नहीं,
सोई जनता को राजा और अंग्रेजों से,
दुख दर्द मिले काफी जनता ने सभी सहे,

पर अब पलटा है वक्त मिला अधिकार है अब,
जनता को जुल्मी तंत्र नही स्वीकार है अब,
अब जाग गई जनता में हैं स्वामित्व आग,
अब राजतंत्र चल भाग भाग तू भाग भाग।

अब गद्दी पे किसी एक का हो अधिकार नही,
हो कोई राजा का बेटा हकदार नहीं,
अब खुद जनता गद्दी पे हुई विराज सुनो,
जनता ने पहन लिया सत्ता का ताज सुनो,

अब जनता से कोई बड़ा नहीं कोई उच्च नही,
अब जनता राजा के आगे है तुच्छ नही,
मौलिक अधिकारों से प्रजा ने श्रृंगार किया,
अब स्वयं प्रजा को राजा का अधिकार मिला,

है संविधान की देन आज गणतंत्र मिला,
जनता को राजा बनने का मंत्र मिला,
संविधान से मिला आज अधिकार सभी,
संविधान ने कहा राजा स्वीकार नहीं!

अब ना कोई सेहंसा होगा, ना कोई रहे आलंपना,
ना कोई अब हुकुम रहेंगे ना ही कोई बादशाह,
ना कोई एक अकेला देश को लूटेगा,
प्रश्न पूछने पर जनता को कूटेगा,

अब तो जनता ही सर्वोच्च विधाता होगी,
भारत की हर काल का निर्माता होगी,
अब जो होगा जनता के मंथन से ही,
देश चलेगा अब जनता के मन से ही,

अब सोचों ये शक्ति किसने दी इनको,
किसने बना दिया है राजा जन जन को,
किसने इनके सिर पे मुकुट सजाया है?
किसने गद्दी पे इनको बैठाया है?

संविधान इसका उत्तर है उसने ही शक्ति दी है,
इसलिए तो राजा ने जनता की अब भक्ति की है,
अब अधिकार मिला जनता को मुंह खोल कुछ कहने का,
वक्त हुआ अब खत्म राजा के राजतंत्र को सहने का।

                            - आदित्य कुमार 
                                 (बाल कवि)

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