दुर्योधन का दुख

गाथा गाते सब पांडव की अपना दुख स्वयं सुनाता हूं,
जी हां मैं पापी दुर्योधन जो कुलनाशक कहलाता हूं,

सब कहते है मेरी ही हठ पे महाभारत का युद्ध हुआ,
लेकिन उस महाभारत में बोलो कौन महात्मा बुद्ध हुआ?

सारी गलती मेरी ही है सम्पूर्ण विश्व को पढ़ा दिया,
लेकिन पांडव ने भी गलती की इसका जिक्र है कहां किया?

मैं तो भला सुयोधन ही था दुर्योधन मैं बना ही क्यों?
किसी ने सोचा इस रण का उद्बोधन मैं बना ही क्यों?

भरी सभा में मित्र को मेरे सूद्र कहा अपमान किया,
"अंधे का बेटा अंधा" कह कुल वधु ने मेरा मान लिया,

दिया आमंत्रण जुए का तो दौड़े–दौड़े आए सब,
मामा सकुनी के पासे से पांडव थे अनजान ही कब?

सब कुछ लगा दिया दांव पर निज पत्नी को भी न छोड़ा,
रण में सब नीति तोड़ दिए उस वक्त न क्यू नीति तोड़ा?

उस वक्त यदि जो तोड़ दिए होते उस खेल की नीति को,
अर्जुन गांडीव उठा लेता और भीम बांधता मुट्ठी को,

हम कौरव में इतना बल था जो रोक सके अर्जुन को हम?
यदि भीम उठा लेता जो गदा हम सौ भाई पड़ जाते कम।

हे कृष्ण द्वारका की भूमि को ले कोई, स्वीकार है क्या?
फिर मेरे पांच गांव पे बोलो पांडव को अधिकार ही क्या?

जब इतना ही था प्रेम उन्हें हस्तिनापुर के सिंहासन से,
तो आखिर आकार ही क्यों बैठे पांडव जुए के आसन पे?

जब जीत गया मैं जीत गया वो हार गए तो हार गए,
तुम मांगे पांच ग्राम मैं बोला मुझको न स्वीकार है ये।

किस बात का रण ठाना बोलो और मुझको ही बदनाम किया
हे तीन लोक के पालनकर्ता कैसा तुमने काम किया?

उनकी गलती दैविक कारण, है प्रकृति का ये नियम कहा,
उनके पक्ष में धर्म दिया और मुझे अधर्मी बना दिया।

धर्म–अधर्म में बोलो किसने किसका छल से वध किया?
किसने विजई लालसा लेकर युद्ध नीति को रद्द किया?

किसने ढाल सिखंडी को कर पितामह के प्राण लिए?
अश्वत्थामा को मृत बताकर गुरु द्रोण की जान लिए?

किसने निः शस्त्र कर्ण को मेरे नियम तोड़कर मार दिया?
इतने पर भी पांडवगण ने कैसे धर्म का सार लिया?

भले ही ये इतिहास हे केशव जैसा चाहो लिखवा लोगे?
पर बिन दुर्योधन हे केशव कैसा महाभारत रचोगे?

और जब जब मेरी बात चलेगी इतना तो सब सोचेंगे,
केवल दुर्योधन ही है गलत इस विचारधारा को रोकेंगे।

                                     - आदित्य कुमार
                                          (बाल कवि)
                                          
*उपयुक्त रचना में किसी प्रकार से किसी भी अधर्म, अत्याचार या कुकृत का समर्थन नहीं किया जा रहा है। उपयुक्त रचना में मात्र एक पात्र विशेष के मन की बातों का वर्णन किया जा रहा है।*



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