अब कोई गरीब नही?

वो पूछते है गरीब अब बचा ही कहां?
पर एक बात बताओ,
तुमने एक बार बाहर की दुनिया देखा है क्या?

जड़ा जाओ अपने शहर के सरकारी अस्पतालों में,
कोई गरीब किसी चौखट पे एक पुरानी गंदी रजाई ओढ़े,
बैठा होगा सालों से।

जड़ा जाओ अपने शहर के रेलवे स्टेशनों पर,
जहां कटती है किसी वृद्धा की रात,
तुम तो अपने घर बैठे बड़ी आसानी से कह देते हो ऐसी बात

वो सड़को पे गिरी रोटियां खाते है,
महज दो रुपए के लिए हाथ फैलाते है,
अगर पांच का सिक्का हाथ लग जाए
तो खुशी से फूले न समाते है।

जड़ा देखो उन बूढ़ों और बच्चों को जिनका कोई नाथ नही,
खैर, तुम्हारे लिए तो कोई गरीब नही और गरीबी जैसी कोई बात नही।

                          - आदित्य कुमार
                               (बाल कवि)

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