खाकी की कद्र

वदन पे खाकी हाथ में लाठी, सर पर टोपी पहने,
कहीं धूप में काम कर रहे, भारत मां के गहने।

कहीं घने जंगल में ये, अपराधी चले पकड़ने,
कहीं गोलियों की बौछारों, विस्फोटों से लड़ने,

कहीं रात दिन जाग जागकर, पहरा देते है ये,
जनता की रक्षा करने में, जान गंवा देते है।

लेकिन दुख की बात बहुत है, कोई कद्र न करता,
कुछ विभागी धब्बों के चलते, गाली इनको भी पड़ता।

घूस खोरों के चलते है, सारा विभाग बदनाम,
पर खाकी वर्दी वाले से, देश की सुबहों-शाम।

पर कोई भी नही समझता, कद्र पुलिस वाले की,
देश के भीतर, रक्षा करने वाले रखवाले की।

इनका भी किरदार अहम है, राष्ट्र के संचालन में,
चलो सलामी इनको भी दे, राष्ट्रप्रेमियों मन से।

         - आदित्य कुमार
              (बाल कवि)


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