छः बजे का स्कूल
एक शिक्षक जो छः बजे स्कूल पहुंचेगा,
सोचो कितने बजे घर से निकलेगा?
तैयार होगा बच्चों को तैयार करेगा,
फिर अगर अपनी गाड़ी नही,
तो बस–टेंपू का इंतजार करेगा,
पुरुषों के साथ परेशान होंगी उनकी बीवियां,
तीन बजे भोर से ही बजेंगी कुकर की सीटियां,
और यदि भोर में खाना न बना तो,
खायेंगे रात की बासी रोटियां,
फिर जिनके बच्चे छोटे होंगे
कौन करेगा उस बेटे को तैयार,
कौन बांधेगा उस बेटी की चोटियां?
नींद अधूरी न होगी पूरी,
पर साहब का फरमान भी है जरूरी।
झपकी लेता पकड़ाया कोई मास्टर,
उनके पीछे लग जाता है नीचे से ऊपर तक हर अफसर!
साहब बस फरमान निकालते है,
जाने शिक्षकों के लिए कैसे मंसूबे पालते है?
जो जी करता सो कर डालते है,
और लाचार शिक्षक न विरोध ना कर सकते नाफरमानी,
बस गुलाम सा हर आदेश मानते है।
–आदित्य कुमार
(बाल कवि) ___________________________________________
*उपयुक्त कविता बिहार में शिक्षकों के लिए ऊपरी अफसरों के बेतुके फरमानों की निंदा करता है, हालही में एक फरमान आया है जिसके तहत शिक्षकों को अब सुबह 6 बजे हर हाल में विद्यालय में पहुंचना होगा। कितने बजे जागेगा वो शिक्षक और कितने बजे घर से निकलेगा? जिसके पास अपनी गाड़ी नही होगी उन्हें इतनी सुबह कौन सा वाहन मिलेगा?
बिना ये सब सोचे समझे साहब लोग बस फरमान निकालते है, आखिर ये फरमान कहां तक जायज है?*
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